ग़ज़ल
दुअम्ली पाक सेना हार कर आजरफ़िशां क्यूँ हो
हमेशा ही हमारे वीर सैनिक खूंचकाँ क्यूँ हो ?
किया है प्यार जब उसने, विरह में तब फुगाँ क्यूँ हो
बता सकता नहीं दिलकी, दहाँ में फिर जबाँ क्यूँ हो ?
किया आतंक से जर्जर अमन अब वादि-ए-कश्मीर
करे जय गान पाकिस्तान की, वो राजदाँ क्यूँ हो ?
चमन के बागवां है, मानता है फूल को बच्चे
गुलों को तोड़ने वालों पे’ माली मेहरबां क्यूँ हो ?
न वो अपना हठीलापन को’ छोड़ा, मैं वसूलों को
अनादर जब मिला तो क्यों कहे तुम सरगिराँ क्यूँ हो ?
मुहब्बत से किया इनकार, सभा में भी किया रुसवा
नहीं काबिल, तेरे घर के वो’ संगे आस्ताँ क्यूँ हो ?
कफस सैयद का’ था सोने का’ आज़ादी कहाँ उड़ना
जहाँ परवाज़ प्रतिबंधित, वो’ अपना आशियाँ क्यूँ हो ?
नहीं इनकार जब तुमको कि मुझसे प्यार तुम करती
अगर सच है यही, तब प्यार आखों से निहाँ क्यूँ हो ?
गलत है भावना में दोष औरों पर लगाना दोस्त
है’ गलती किसकी’ जाने बिन कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो ?
है’ जब आमाल जिम्मेदार, खुद मानव तबाही की
स्वयं फाँसी लगाया और दोषी आसमाँ क्यूँ हो ?
लिया है फैसला तुमने, न दिल अब तुम मुझे दोगे
मिलाया दुश्मनों से हाथ, तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो ?
पडोसी किन्तु ‘काली’, है कहाँ वो मित्रता उनसे
अगर हम दोस्त बन सकते नहीं, तो नीमजाँ क्यूँ हो ?
शब्दार्थ : दुअम्ली = जिसका दो हुकूमत हो
आजरफ़िशां=आगवर्षक, खूंचकाँ=रक्तरंजित
फुगाँ=कराह, आर्तनाद ; दहाँ= मुहँ
सरगिराँ=नाराज ; संगे आस्ताँ=चौखट का पत्थर
निहाँ=गायब , कफस= पिंजड़ा , कशाकश =असमंजस
नीमजाँ= अधमरा
कालीपद ‘प्रसाद’