चर्चित होंगे नाम कभी
जो बतियाते सिर्फ कलम से, अँधियारों में।
वो कब छपते खबरों में या, अखबारों में।
नमन उन्हें जो, धर आते भर नेह उजाला
चुपके से इक दीप, तिमिर के ओसारों में।
राह दिखाते कोहरे-बरखा में जुगनू भी
आब न होती जब नभ के चंदा तारों में।
छल-बल देर-सबेर विजित होंगे निर्बल से
लिप्त रहा करते जो कुत्सित व्यापारों में।
सधा हुआ ही राग बंधु! गाया जाएगा
सत्य-मंच पर गीतों में या अशयारों में।
चर्चित होंगे नाम विश्व में कभी ‘कल्पना’
जो रचते इतिहास घरों की दीवारों में।
– कल्पना रामानी