नहीं
कदम देख रहे हैं ,हाल रास्तों का
दिल रिश्तो का ख्याल करता है
माना अनजान शख्स था तेरे शहर में
लेकिन राही तो यूहीं चलता है
मैं बैठा हूं बाहर फुटपाथ पर भिखारी ,भिखारी ही सही
कम से कम महलों में बैठा मुखोटे बाज ,पाखंडी तो नहीं
नहीं बनना मुझे प्रिय किसी का ,मैं फेहरिस्त में अप्रिय ही सही
मेरी सच्ची अभिव्यक्ति कम से कम,किसी का चाटुकार तो नहीं
मौत एक सच्चाई है जानता हूं ,यह मौत ही सही
सांसें चल रही आजाद कम से कम, किसी का गुलाम तो नहीं