मेहनत की खाते हैं
चेहरे पर कसक की झलक
सिर पर ईंटों का भारी बोझ ,
यह मेरे अद्वितीय भारत की
अद्भुत, जीवंत, कर्मठ खोज।
कहते हैं लोग हमें मजदूर
ईंट-पत्थर,गारा हम ढोते हैं ,
पर नहीं हैं हम औरों से कम
किसी के आगे नहीं रोते हैं ।
हमारे सुकर्मों का महत्व
असीम,अपार,बेहिसाब है ।
हमारी रचना से ही जगत में
भारत का नाम बेमिसाल है।
झोंपड़ी में रहकर भी
महलों सा सुख पाते हैं।
मेहनत की खाते हैं
मेहनत की खाएंगे।
मेहनत से कभी भी
हम जी न चुराएंगे ।
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम