रिश्ता
सुनहरी सवेरे की सरस-सुहानी वेला थी. पीपल के एक घने पेड़ की एक डाल पर चिन्नी चिड़िया अपनी नन्ही बेटी मिन्नी के साथ बैठी थी. चिन्नी चिड़िया अपनी अनुभवी-मटकती आंखों से चौकन्नी होकर अपनी बेटी से बातें कर रही थी. चिन्नी अब कुछ-कुछ सयानी हो चली थी. आज उस को मॉम से एक ख़ास बात करनी थी. उसने सुबह-सुबह हंसते हुए कहा- ‘शुभ प्रभात, डिअर मॉम’.
शुभ प्रभात , डिअर मिन्नी”. चिन्नी चिड़िया के चहकते हुए कहा.
”मॉम, एक बात कहूं, मानोगी”? मिन्नी बोली.
”हां-हां, कहो. क्या बात है मिन्नी”?
”मॉम, अब मैं बड़ी हो गई हूं, क्या मुझे नील गगन में उड़ने की इजाज़त मिलेगी”? मिन्नी मॉम के इंकार से तनिक डरते हुए बोली.
”मिन्नी, तुम अब सचमुच सयानी हो गई हो. मैं देखती रहती हूं, कि तुम बराबर उड़ने का अभ्यास करती रहती हो और अब तुम्हें नील गगन में उड़ने का साहस भी आ गया है. उड़ने से पहले मैं तुम्हें कुछ सिखाना चाहती हूं.”
”मॉम ज़रूर बताइए, बच्चे माता-पिता से ही तो दुनिया में व्यवहार करना सीखते हैं.”
”तो सुनो मिन्नी, आज का पहला सबक- रिश्ते कम बनाइए, लेकिन उन्हें दिल से निभाइए, क्योंकि अक्सर लोग बेहतर की तलाश में, बेहतरीन खो देते हैं.”
”वाह मॉम, यह तो बड़ी अच्छी बात बताई. मैं ज़रूर ध्यान रखूंगी. दूसरा सबक कौन-सा है?
”दूसरा सबक है, आस्था सब पर रखना, लेकिन विश्वास सिर्फ़ खुद पर करना, क्योंकि-
”इस जहां में दूसरो का दर्द कब अपनाते हैं लोग
हवा का रुख देखकर अक्सर बदल जाते हैं लोग.”
”मॉम, इतनी अच्छी-अच्छी बातें आप कहां से सीखी हैं आपने?”
”मिन्नी, कुछ माता-पिता से, कुछ अपने अनुभव से.”
”मॉम, मैं अब जाऊं?”
”जा बेटी जा, परमात्मा तेरी रक्षा करेगा.” चिन्नी चिड़िया आशीर्वाद देती हुई बेटी को उड़ता हुआ देख रही थी.