श्रेष्ठ कौन
काँटों से घिरा
पर मुस्कराता गुलाब
कठिनाइयों से घिरा
अजनबी सा खिल रहा है।
दूसरी तरफ मानव
काँटों से दूर होकर भी
कर्मों को आरोप दे रहा है।
एक है गुलाब
दूसरा मानव मस्तिष्क
भावनाओं का घर
अंतर है कितना
हर एक पहलू में
कितना तीव्र कितना प्रखर ,
अरे गुलाब !
तुम शूलों की शैया पर
सो कर भी खिल रहे हो,
कंटक पीड़ा को
फूलों की कोमलता में
परिणित कर रहे हो
दूसरी ओर यह
मानव मस्तिष्क पटल
डगमगाता अपनी राह पर
मगर कहलाता अटल
अतीत की स्मृतियाँ में
बिता रहा हर एक पल
कुछ उजली कुछ धुंधली
ढूंढ रहा उनका हल
स्मृतियाँ बीती-
आकांक्षा जागी
यथार्थ ने किया विश्राम
जीवन की गति ऐसी रख
अब भुगत रहा उसका परिणाम।
एक हृदय श्रेष्ठ ,
एक बुद्धि श्रेष्ठ
दोनों में है कौन श्रेष्ठ ?
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम