कविता

समाज

चोट लगी है उंगली में
थोड़ा सा खून भी निकला है
मगर क्या बात है
अब दर्द का एहसास नहीं है मुझे
लगता है कि यह दर्द वाला एहसास
इस समाज में कहीं खो गया है
यह समाज महसूस ही नहीं करने देता
कुछ भी अब
गले से नीचे भी नहीं उतरती रोटी
क्योंकि यह समाज पकड़े हुए हैं एक तरफ से
छीनने के लिए
कैसा बना दिया है इस समाज ने मुझे
लगता है पत्थर सा
महसूस नहीं होता कुछ भी
भला हो, बुरा हो ,अत्याचार पर
सब देखकर चुपचाप सहता रहता है
यह पत्थर
क्योंकि इसके अंदर एहसास नहीं
यूं ही समा जाएगा एक दिन
जब फटेगी छाती धरती की
इतना पाप देखकर
प्रलय !!!
प्रलय आएगी
बहुत सह चुका है ये

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733