यादें
अक्सर रातों में याद कर लेती हूं ,
जो बीत गया है उसे बुन लेती हूं ।
खवाबों को सजाने की धुन में ,
कुछ टूटे हुए टुकड़े चुन लेती हूं ।
वो देखो चुभ रहा है कुछ आज भी ,
दिल में कसक है कुछ खोने की ।
वो भूले हुए सफर की थकान ,
उनमें से कुछ राहत ढूंढ लेती हूं ।
विकल व्याकुल नीरस सम्बेदना ,
विरह रस को उतार कर शब्दों में ,
छिपाकर दुनिया से तुम्हारे हाथ को
आज भी अपने हाथ में थाम लेती हूं ।
अद्भुत है ये जिंदगी की कसक देखो ,
दर्द में भी दिल को सुकून नजर आता है।
गिला करता रहा दिल जिससे उम्र भर,
उसी बेबफा में मोहब्बत ढूंढ लेती हूँ ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़