अपलक बाट निहार रहे हैं, नयना पिया दरस को तरसे
अपलक बाट निहार रहे हैं, नयना पिया दरस को तरसे।
अबके सावन बदरी के सँग, प्यार पिया का भी तो बरसे।।
श्यामल बदरी के पीछे से, आसमान से झाँके चँदा।
ऐसा लगता है चुपके से, रूप धरा का ताके चँदा।।
आस मिलन की लिए चकोरी, चँदा को ताके तरुवर से…
डोल रहे कलियों पर भँवरे, फूल फूल तितली मँडराए।
कोयल ने बागों में अपनी, स्वर लहरी के स्वर बिखराए।।
सारी सखियाँ झूला झूलें, ताक रही मैं उनको घर से…
गर्जन कर कर बैरी बदरा, धडकन बढा रहे हैं दिल की।
आँख दिखाती चपल दामिनी, बैरन बनी मिलन मंजिल की।।
हाथ जोड कर साथ तुम्हारा, माँग रही हूँ मैं ईश्वर से…
घर के बाहर बदरा बरसे, घर के अंदर बरसे नयना।
गुमसुम गुमसुम से रहते हैं, तुम बिन पायल कँगना गहना।।
तुम बरसो तो कोपल कोई, उगे खुशी की दिल बंजर से…
सतीश बंसल
०७.०७.२०१७