आजकल रख़ना ज़रूरी है नज़र हालात पर
आजकल रखना ज़रूरी है नज़र हालात पर
क्या पता की रूठ जाए कौन कब किस बात पर
की बहुत बातें ज़िन्होनें नीति की व्यवहार की
आ गये वो भी सियासत की उसी औकात पर
काश ऐसा दौर भी देखे कभी तो ज़िन्दगी
आदमीयत जब पडे भारी धरम पर ज़ात पर
मोल इन खुद्दारियों का क्या उन्हें मालूम जो
पल रहे हैं चंद टुकडों की मिली ख़ैरात पर
लड़ रहा है देखिये हिम्मत लिये क्या बात है
एक दीपक पड़ रहा भारी अँधेरी रात पर
नाम पर भगवान के होने लगा व्यापार जो
है कुठाराघात ये आदम के अहसासात पर
चंद रुपयों में वफ़ा ईमान ग़िरवी रख दिये
हैं तभी चुप वो गरीबों से जुड़े मसलात पर
सतीश बंसल
१८.०७.२०१७