सावन…
ये मौसम !
न जाने कौन सा रंग लाई
बहारों में….
सावन की रिमझिम फुहार
पर यूँ लगता है जैसे !
आसमान में छाई…..
मनहूसियत उदासी की
काली घटाएं…..
शायद, वजह हो तुम !
वीरान उजड़ा सा मन
तुम्हारे आलिंगन को
तरस रहा कब से…..
सावन की बरसती बारिश
सौंधी मिट्टी की खुशबु…..
पक्षियों की चहचहाहट
एक तुम्हारे न होने की कमी
विरह की जलन !
पल-पल बढ़ती जाती….
सम्भाले नहीं संभलती
अब ख्वाइशें दिल की !
नस-नस में दौड़ रही….
आरजू एहसासों की !
उत्तेजित हो रहा
तुम्हारे ख्यालों से
मन का मौसम….
कि आ जाओ साजन
आया सावन…..