कविता

पत्थर का शहर

तुम्हें याद है न..
कभी तुम्हारे अंदर एक गाँव बसा करता था
लहलहाते खेतों की ताज़गी लिए
भोला भाला,सीधा साधा सा गाँव
और उसी गाँव में मेरा भी घर हुआ करता था
मिट्टी से लिपा हुआ भीनी भीनी खुशबू लिए
एक प्यार पला करता था
एक छोटा प्यारा सा घर
पर तुम ने ये क्या किया
प्यार के इस लहलहाते खेत को
पकने से पहले ही उजाड़ दिया
और वहाँ एक शहर बसा लिया
अब तो मेरा घर भी घर न रहा
पत्थर का मकान बन गया
मुट्ठी भर सपने और सुखद अहसास
उसी पत्थर के नीचे कही दब कर रह गए
और मैं बेघर हो ,भटक रही हूँ
तुम्हारे इस पत्थर के शहर में…

कनेरी महेश्वरी

जन्म तिथि_ २६ नवम्बर १९४७ जन्म स्थल_ देहरा दून उत्तराखण्ड शिक्षा_ स्नातक माता_ स्वर्गीय श्री कुशाल सिंह रजवार माता_ स्वर्गीय श्रीमती रुकमणी देवी व्यवसाय _ केन्द्रीय विद्यालय से मुख्य अध्यापिका के रुप्में सेवा निवृत काव्य संग्रह_’आओ मिल कर गाए गीत अनेक’ (बाल गीत संग्रह) “सरस अनुभूति” - साझा काव्य संग्रह_ टुटते सितारो की उड़ान, प्रतिभाओं की कमी नहीं अन्य कृतियाँ_ (ओडियो कैसेट) “गीत नाटिका” संग्रह बच्चों के लिए, “मूर्तिकार सम्मान _ १.प्रोत्साहन पुरस्कार द्वारा, केन्द्रीय विधालय संगठन १९९४ २ - राष्ट्र्पति पुरस्कार,२००० ब्लांग_ मुख्य ब्लांग “अभिव्यंजना बच्चों के लिए ब्लाग “बाल मन की राहें ब्लाग पता http://kaneriabhivainjana.blogspot.in ई-मेल [email protected] पता ७९/१ नैशविल्ला रोड़ देहरा दून उत्तराखंड़ पिन कोड़ न. २४८००१ फोन _ 9897065543