मतलबी दुनिया
कैसे समझाएं हम उनको
हमारे मज़ाक़ को भी वो कटाक्ष समझ बैठे,
दिल से प्यार है उनसे , वह मेरे अपने हैं,
फिर भी वो हमको अपना गैर समझ बैठे,
यही तो है ज़िंदगी की नादानी
कौन अपना है और कौन पराया
कोई इसे आजतक समझ नहीं पाया ,
इस मतलबी दुनिया का दस्तूर निराला है,
खुदगर्ज़ी ने दोस्ती का नाम बदल डाला है
खुदगर्ज़ी ने दोस्ती का नाम बदल डाला है
ऐ बन्दे, तू अपना निस्वार्थ कर्म किये जा,
तेरा सच्चा कर्म .
कभी उस से छुप नहीं सकता,
उसकी मर्ज़ी के बिना तुझे-
कोई कांटा तक नहीं चुभ सकता , — जय प्रकाश भाटिया