कुंडलिया
खुशी शाम नभ की लड़ी, लाल रंग इतराय
शुभ्र हंस प्रिय हंसिनी, कमल कमलिनी छाय
कमल कमलिनी छाय, मिलन पिय राग सुनारी
सुंदरता खिली जाय, किनारी नयन निहारी
‘गौतम’ करत किलोल, सुलोल बरखा की हँसी
मंद मंद रस घोल, मचल गई जल की खुशी॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी