परीक्षाओं के समर में… फिर से
वैसे तो ज़िन्दगी हर घड़ी
इक इम्तिहान है
किन्तु पूर्व-नियोजित परीक्षाएँ
तो कहा जाता है
बचपन, जवानी की ही पहचान है|
केजी, नर्सरी में हिंदी, अंग्रेज़ी
पढ़ाई जाती है
घर में मातृभाषा भी बालपन में
सिखाई जाती है
कुछ बड़ा होने पर चौथी भाषा
पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाती है|
अचरज नहीं! तीव्र स्मरण-शक्ति,
नवीन के प्रति उत्सुकता के कारण
सभी भाषाएँ आसानी से
दिमाग में समा जाती हैं
गणित, विज्ञान, अन्यन्य विषय भी
अपनी जगह बनाते हैं|
हम उम्र में बढ़ते जाते हैं, अब
पढ़ाई के स्थान पर असल ज़िन्दगी के
इम्तिहान में खुद को खड़ा पाते हैं|
रोज़ नयी समस्याएं ,नयी चुनौतियां
नयी-२ खोजें, नए समाधान
बस जीवन-गाड़ी उतार-चढ़ाव के संग
अपने ट्रैक पर चलती चली जाती है|
मुश्किल तो आती है तब
जब अर्ध-शतक उपरान्त
हम फिर स्वयं को
लिखाई-पढ़ाई की उसी आँच पर
नए प्रयोग की खातिर पकाने लगते हैं
कठिन भाषा, सुनियोजित पाठ्यक्रम
लिखना, पढ़ना और तोते की तरह रटना
अब टेढ़ी खीर लगने लगते हैं|
याद आते हैं फिर बचपन के वो दिन
जब माँ बैठे-बैठे खिलाती थी,
घर काम के लिए नहीं दौड़ाती थी,
भीगे बादाम, संतरों को छील-छील
अपने आराम को त्याग, प्यार से खिलाती थी
तब पढ़ाई उतनी मुश्किल नज़र नहीं आती थी|
अब इन्द्रियों पर प्रौढ़ावस्था का असर है
स्मरण-शक्ति का उत्थान भी पतन पर है
चारों ओर बस काम ही काम
बच्चे-बड़े सभी का ध्यान
कैसे करें पढ़ाई, और
लगाएं नाती-पोतों की तरह रट्टे
अब यही समस्या प्रधान है|
सबको पता है हम परीक्षा के समर में हैं
उनकी उम्मीदें भी पहले की तरह शीर्ष पर हैं
उफ़्फ़! परीक्षा के ‘तीन घंटों‘ का सफ़र
नवीन भय फिर से अपने उत्कर्ष पर,
ब्रिटिश सेना-सी परीक्षाएं खड़ी सीना तान हैं
किन्तु हमने रानी लक्ष्मीबाई-सी थामी लगाम है
पीठ पर बाँध ली फिर से कमान है|
युद्ध-सी स्थिति यह
हर तरह से डराने को तैयार है
पर हम-आज की नारी
हर चुनौती से टकराने को तैयार हैं
मेहनत से बनाया है घर को
अपने पर हमें विश्वास है
क्योंकि मेहनत के आगे हर डर की हार है|