यादें
छिड़ जाता है एक युद्ध अंतर्मन में ,
बैठ जाती हूँ सब छोड़कर जब तेरी यादों में ।
कैसा अहसास है हर पल बिन तेरे ,
डूब जाती हूँ हर पल सिर्फ तेरे खवाबों में ।
काश समझा पाती अपनी सारी तनहाइयाँ ,
ओ साथी तुझे धुंध भरे जीवन मे ।
छिड़ जाता है एक युद्ध अंतर्मन में
वो डांट भरी बातें ,वो समझाना तेरा ,
जीवन का अर्थ था गहरा तेरी चाहत में।
भूल गयी वो दुख की रतियाँ ,
पाकर एक समंदर प्यार भरी बातों में ।
मत बिसराना इस धूमिल से तन मन को
मुश्किल है गुजारा बिन तेरे इस नीरस जीवन में ।
छिड़ जाता है एक युद्ध अंतर्मन में
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़