जिसमें हित का भाव समाहित हो वही साहित्य है
जिन भावों में हित की भावना समाहित हो वही साहित्य है तथा उन भावों को शब्दों में पिरोकर प्रस्तुत करने वाला ही साहित्यकार कहलाता है |ऐसे में साहित्यकारों पर सामाजिक हितों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी पड़ जाती है जिसका निर्वहन उन्हें पूरी निष्ठा व इमानदारी से करना होगा ! साथ ही सरकार को भी नवोदित साहित्यकारों के उत्थान के लिए भी कदम उठाना होगा!
पत्र पत्रिकाओं अखबारों आदि ने तो साहित्यकारों की कृतियों को समाज के सम्मुख रखते ही आये हैं साथ ही सोशल मीडिया ने भी इस क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके परिणाम स्वरूप आज हिन्दी साहित्य जगत में रचनाकारों की बाढ़ सी आ गई है ( खास तौर से महिलाओं की ) जो निश्चित ही साहित्यक क्रांति है!
बहुत सी महिलायें ऐसी हैं जिन्होंने पूर्ण योग्यता तथा क्षमता रखने के बावजूद भी अपने परिवार तथा बच्चों की देखरेख हेतु स्वयं को घर के चारदीवारी के अन्दर कैद कर लिया उनकी भावनाओं के लिए सोशल मीडिया जीवन दायिनी का काम किया है! निश्चित ही उनके लेखन से समाज को एक नई दिशा मिलेगी!
आज की पीढ़ी का भी हिन्दी साहित्य की तरफ रुझान बढ़ रहा है जिन्हें प्रेरित करने तथा मार्गदर्शन में भी सोशल मीडिया अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है!
किन्तु अफसोस के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि साहित्य जगत भी भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद से अछूता नहीं रह गया है! यहाँ भी नये नये रचनाकाकारों से साहित्य हित के नाम पर मनमानी पैसे ऐठे जा रहे हैं जिनके प्रलोभनों के जाल में नये साहित्यकार आसानी से फँस रहे हैं! भला छपने तथा सम्मान की चाहत किसे नहीं होगी…. इसी लालसा में रचनाकार कुछ साहित्य मठाधीशों के मनमानी के शिकार हो कर अपनी महत्वाकांक्षा को तुष्ट कर रहे हैं जिससे साहित्य हित की परिकल्पना कभी-कभी विभत्स सी लगने लगती है!
फिर भी समाज में यदि बुराई व्याप्त है तो अच्छाई भी है इसलिए निराश होने की आवश्यकता नहीं है! अपने लेखन पर ध्यान केंद्रित रखना है सामाजिक हित की भावना से!
©किरण सिंह