कविता : भूख
किसान का बेटा बोला माँ से,
उलझन मेरी सुलझादो न।
नेता कैसे बनते है ?
मईया मुझे बतादो न।।
मुस्कुराकर बोली माँ,
घूम कहाँ तू आया है ?
मेरे प्यारे नेताजी का,
प्रश्न कहाँ से लाया है ?
चल आ पास मेरे,
दुनियाँ तुझे दिखाती हूँ।
नेता कैसे बनते है ?
आज तुझे बताती हूँ।
ये कोई फसल नहीं,
जो बापू तेरे उगाते है।
आपस में लड़वाना सीख लिया,
वो नेता ही बन जाते है।
ये ऐसा हुनर है जो,
किसी किसी को आता है।
हम लोगों का हक धन वैभव,
घर इनके ही जाता है।
हम तो खायें रूखी सूखी,
वो मेवा ही खाता है।
चुनाव में अपने वोट बैंक को,
अपनी बस्ती जलाता है।
ऐसा नहीं है, सारे नेता,
भ्रष्टाचार मचाते है।
पर बेटा, वो गिनती में कम,
भीड़ में ही छुप जाते है।
अच्छा मईया, अब मै समझा,
भूखे हम क्यों मरते है ?
पहले होते थे दानव अब नेता,
पूरी कमी ये उसकी करते है।
सौरभ दीक्षित “पिडिट्स”