गीतिका-1
महके महके आशियाने हो गये
चिड़िया के बच्चे सियाने हो गये
हर तरफ हैं प्यार की ही खेतियाँ
नफरतों के अब जमाने हो गये
जेब में जो चार पैसे आ गये
उनके तीखे फिर निशने हो गये
अपना कहकर लूटते थे जो हमें
हमारी बारी आई तो बेगाने हो गये
उसने पलभर को जो थामा हाथ को
सारे मंजर फिर सुहाने हो गये
हमने उनके नाम नज्में क्या लिखीं
लोग कहते हैं दीवाने हो गये
सत्ता की जयकार सीखी हमने तो
काम सारे बिन बहाने हो गये
इस नोटबंदी से दर्द लगे है देश में
बंद चोरी के मुहाने हो गये
— अशोक दर्द