गीतिका-2
नेकियाँ दिलमें काम भले जिनके
जमाना संग संग चले उनके
जिनका कोई भी दोष नहीं था
बस्तियों में घर जले उनके
झुक कर जो जो चले जग में
हार फूलों के गले पड़े उनके
रुतबे थे बड़े जमाने में जिनके
खोट्टे सिक्के भी चले उनके
सियासत थी हाथ जिनके
सूखे बाग़ भी फूले फले उनके
जो चले थे जग में रौशनी लेकर
दर्द अँधेरा रहा तले उनके
— अशोक दर्द