गीतिका-3
शज़र पे फूल आये हैं बाद मुद्दत के
शाख के लब मुस्कुराये हैं बाद मुद्दत के
जूझते पतझड़ों से इक जमाना निकला
बहार के मौसम आये हैं बाद मुद्दत के
सूना आंगन फिर से चहचहाया है
गीत चिड़ियों ने गाये हैं बाद मुद्दत के
मुरझाये गालों पे रंगत लौट आई है
किसी ने गले लगाये हैं बाद मुद्दत के
जिनके इन्तजार में गुजरी उम्र साड़ी
खत उनके आये हैं बाद मुद्दत के
सूख गये थे जो दिल के खेत सारे
फिर से लहलहाए हैं बाद मुद्दत के
मेरी तिश्नगी की सुन ली खुदा ने शायद
मेघ मिलन के छाये हैं बाद मुद्दत के
मेरे ख्याल वक्त की खूबसूरत किताब से
हसीन लम्हे चुरा लाये हैं बाद मुद्दत के
— अशोक दर्द