जंगल हुआ भयमुक्त
चम्पक वन में एक बकरी रहती थी। वह बहुत निडर थी।उसको किसी का भय न था। जंगल का राजा शेर भी सामने आ जाता तब भी न डरती। दूसरे जानवरों की तो बात ही न पूछिये। जंगल में अनु गिलहरी शीला बिल्ली चीकू खरगोश जग्गा गीदड़ मोपट भालू दिलेर हाथी चुन्नू गधा झुन्न चीता आदि जानवर थे। मांसाहारी मांस खाते थे और शाकाहारी शाक भाजी लेकिन दुःख इस बात का था कि जब कभी मांसाहारी अचानक किसी छोटे जानवर को मार डालते तो जंगल भय से थर्रा उठता। सबके मन मे बात उठती कि क्यों न यह सब बन्द करवाया जाये। इस तरह तो हम सब इन्हीं हिंसक पशुओं की दया पर निर्भर रहेंगे। यह जब चाहें हमारा जीवन समाप्त कर दें।इससे तो अच्छा है हम सब किसी दूसरे जंगल में चले जायें या कोई दूसरा उपाय सोंचे।
इस तरह सब कुछ चलते-चलते कई वर्ष बीत गये। चमेली बकरी के जम्मू-गम्मू दो बच्चे भी हो गये। वह बच्चों के साथ जंगल जाती। उनको जंगल की बाते बतलाती और चरना सिखलाती। शाम को वापस घर आ जाती। अब उसे कोई दुःख न था। बच्चों के साथ प्रसन्नता पूर्वक उसके दिन बीत रहे थे।
एक दिन शाम का समय था। चमेली अपने बच्चों के साथ जंगल से वापस लौट रही थी कि अचानक कहीं से जंगल का राजा शेर सिंह सामने आ गया और दहाड़ते हुए बोला – ‘‘अबे चमेली रुक जा आज तेरा व तेरे बच्चों का नम्बर है। तू चाहे तो पहले यह निर्णय ले सकती है कि मैं पहले किसका शिकार करूं।
शेर सिंह की दहाड़ सुनकर अच्छे -अच्छों की सिटटी -पिटटी गुम हो जाती थी, वह तो फिर बकरी जाति ठहरी। थोड़ा सा साहस बटोरकर बोली –
‘महाराज आप की बात भला कौन टाल सकता है। आप इस जंगल के राजा हैं। जब चाहे जिसका शिकार कर सकते हैं। फिर भी यदि आप सुनना चाहे तो मेरी आपसे एक विनती हैं।
ठीक है कहो – शेर सिंह बोला
‘महाराज मेरे बच्चे अभी छोटे हैं। इनको बड़ा हो जाने दीजिए। दुनिया देख लेंगे। आप चाहें तो मुझे अभी खा सकते हैं। एक विनती और है मैं इन्हे घर छोड़ आऊँ।’बकरी ने विनय पूर्वक कहा।
‘क्या मुझे मूर्ख समझ रखा है? तू लौट के आएगी? चल मरने को तैयार होजा।’
‘नहीं महाराज मेरी बात का विश्वास कीजिए यदि मैं वापस न आऊॅं तो अगले दिन आप मुझे व मेरे दोनों बच्चों को भी खा लेना।’
चमेली की बात पर शेर सिंह को विश्वास हो गया उसने कहा- ‘ठीक है जाओ। मैं यहीं पर प्रतीक्षा कर रहा हूँ।’
‘शेर से छूटकर चमेली अपने बच्चों के साथ सीधे कुन्दन लुहार के पास पहुँची और उसने कहा – ‘काका, हम लोगों के सीगों को लोहे से गढ़कर नुकीला बना दो।’
‘क्या कहा चमेली? दिमाग तो ठीक है तेरा?’
‘हाँ, हाँ, काका! मैं इस जंगल को भयमुक्त बनाना चाहती हूँ. नहीं तो आज मेरे बच्चों को, कल किसी और के बच्चों को अनाथ होना पड़ेगा। अब आप जल्दी से हम लोगों के सींग पैने कर दीजिए।’
‘ठीक है बिटिया’ उसके बाद चमेली व उसके बच्चों जम्मू-गम्मू के सींग कुन्दन काका ने नुकीले बना दिये।
इधर चमेली ने जम्मू- गम्मू से कुछ देर बात की फिर तीनों धीरे-धीरे शेर के पास चल दिये। शेर की नजरें बचाकर जम्मू- गम्मू दोनों ही उसके पीछे झाड़ियों में जाकर छुप गये। चमेली अकेले ही शेर के पास पहुंची- ‘लो महाराज मैं आ गयी। अब तो मुझ पर विश्वास हुआ?’
‘हा! हा! चमेली! तूने बकरी जात की नाक ही ऊॅंची कर दी। अब मैं तुझे ही खाता हूँ।’ शेर सिंह दहाड़ते हुए बोला।
‘महाराज! आप क्यों कष्ट करेगे। आप आंखें बन्द कर और मुख खोलकर बैठ जाइये मैं स्वयं अपना सिर आपके मुख में रख दूंगी।’
‘अरे चमेली तूने तो कमाल ही कर दिया। इससे अच्छा क्या हो सकता है। ठीक है तू आ, मैं मुख खोले बैठा हूं।’
चमेली तो यही चाहती थी उसने में -में की ‘आवाज‘ निकाली उसके दोनों बच्चे तैयार हो गये और धीरे-धीरे शेर की तरफ बढ़ने लगे
शेर के बिल्कुल समीप पहुंचकर अचानक ही चमेली की आंखें क्रोध से लाल हो गई और बिना कोई क्षण गंवाये अपने दोनों नुकीले सींग झपटकर शेर सिंह को गरदन में घुसा दिये। तभी पीछे से जम्मू- गम्मू ने भी अपने-अपने सीगों से शेर सिंह को मारना शुरु कर दिया।
शेर सिंह तो निश्चिन्त थे उन्हें ऐसे किसी अचानक हमले की आशंका न थी।
इसलिए वह सभंल न सके और बुरी तरह घायल हो गये जैसे-तैसे जान बचाकर भागे। फिर मुड़कर कभी जंगल में न आये।
अब तो जंगल के सभी जानवर बहुत खुश हुए। चमेली रानी बन गयी थी। उसकी बुद्धिमानी और निडरता से जंगल भयमुक्त हो गया था ।