कविता

ऐसे नववर्ष मनेगा

न तन बदला न मन ही बदला न परिवेश में कोई बदलाव चिंता न चिंतन कैसे नववर्ष, क्या था क्या है और क्या होगा जिसको यह नववर्ष जनेगा, निरुद्देश्य आधे-अधूरे मन कहें अथवा मानसिकता से क्या ऐसे ही नववर्ष मनेगा हां हर वर्ष मनेगा।

कविता पद्य साहित्य

जिनके घर में मां होती

मां आखिर मां होती पुत्र को कोई पीडा हो वह रोए उससे पहले मां अनुभव कर रोती। स्नेह सुधा रस मां है गायों में सुरभि मां है, स्वंय गीले पर सोती शिशु का हंसना मां है। विश्व की प्रथम गुरू मां ही तो कहलाती है, संतान हित हर संघर्ष कठिन सरल बनाती है। लडाई अगर […]

भजन/भावगीत

उमा के आदर्श

कैलाशपति उमा के अनुपम आदर्श महिमा शाली भोलेनाथ शिव वही है, रूद्ररूपक कालकूट से नीलकण्ठाय पंचदेवों में प्रधान व्यास मुनि कही है। शिव महापुराण सात सात संहिताएं चौबीस सहस्र श्लोक गूंजते न थकते, यह आदि मध्य अन्त प्रकृतिदेवी पति शिवशंभू महेश सब काल भय रखते। बिल्वपत्र धतूरा भांग कर्पूर अतिप्रिय रुद्राक्ष चंदन अक्षत जल प्रिय […]

कविता पद्य साहित्य

फिल्में

केवल मनोरंजन ही न करतीं दिशा बोध भी कराती फिल्में, साहित्य शोध उद्देश्य बोध का दायित्वदर्पण बनजाती फिल्में। बंकिमबाबू प्रेमचन्द्र उपन्यास देश समाज फिल्मों से भाए, नीरज और गुलजार के गीत कण्ठ लता किशोर महकाए। व्यंग्य सा अनकहा कहकहा भारतीय फिल्मों की कहानी, हम क्या थे क्या होंगे गुप्त सा भावबोध कराती इनकी बानी। एक […]

कविता पद्य साहित्य

भारत को प्रेमचंद चाहिए

आनन्दी देवी का जाया पिता अजायब राय पाया, गांव लमही जीवन क्षेत्र वाराणसी का गौरव लाया। जन्मा बालक प्रासंगिक धनपतराय नाम हुआ, आरम्भ संघर्ष से जीवन रचा ठाकुर का कुआं। उर्दू से लेखन आरम्भ कृति सोजे वतन आई जमाना के संपादक से  प्रेमचंद की पदवी पाई। विश्व के अधिकांश ही विद्वानों के यह चहेते, स्वंय […]

कथा साहित्य लघुकथा

अपनत्व

तीन बेटे भरा पूरा परिवार जीवन महीनों से अस्पताल में बिता रही मां से एआरटीओ बेटा कहता है कि मैं दस साल से झेल रहा हूं,खाना नास्ता फल क्या न भिजवा रहा हूं, ऊपर से एक नौकर रखा है देखभाल के लिए साथ ही पूरा अस्पताल। दूसरा शिक्षक व तीसरा इंजीनियर बेटा भी कुछ यूं […]

कविता पद्य साहित्य

हर घर तिरंगा

हर घर पहुंच गया तिरंगा रहे सदैव ऊंचा ही ऊंचा, दे शक्ति और हर्ष सभी को न मन हो किसी का नीचा। तिरंगा लेकर भारतवासी पग पग मिला आगे बढे थे, रक्त बहाया झुकने न दिया हम शत्रुओं से खूब लड़े थे। इसी तिरंगे पर बैठकर के बुलबुल सुंदर गीत बनाती, कोयल बसन्तराग छेड़ती नदी,वन,झरने,पहाड़ […]

कविता पद्य साहित्य

वंदन अभिनंदन कर लूं

आशुकवि नीरज अवस्थी श्रृद्धेय खमरिया पण्डित की पहचान थे अपने कृतित्व व्यक्तित्व चिन्तन से जनपद में साहित्य की शान थे। कवि समीक्षक और संपादक सहज सरल स्वभाव के धनी थे अल्पायु में साहित्याकाश स्पर्श रत्न आभूषणों में मानो मणी थे। काव्य रंगोली के संस्थापक आयोजनों से सबको जोड़े थे जब विस्मृतियां हो रही हावी तन […]

कविता पद्य साहित्य

सामंजस्य की ओर

सृष्टा से आदि उसी से अन्त कभी यात्रा अनंत की, शाश्वत सत्य कि वक्त हमेशा बदलता रहेगा। जिस पत्थर को आज हम देखते हैं वह कल वहां न होगा किस रूप स्थान मान-अपमान से होगा कदाचित कह पाता, यही तो है भौतिकता से सांस्कृतिकता  की यात्रा उगते सूर्य से डूबने की ओर बचपन में सपनों […]

लघुकथा

आज जहां हिमालय है

कैलाश ने अपनी बेटी का विवाह बड़ी धूमधाम से किया।दहेज का आदर्श प्रस्तुत कर दिया।कुछ भी लेन-देन नहीं,समाज व क्षेत्र में अच्छी पहचान बना ली।उसके बाद सैंकड़ो आदर्श विवाह करा दिए। अब इकलौते बेटे का विवाह था,लड़की वाले बडा नाम व आदर्श सुनकर आए।कैलाश मुंह से न बोले पर एक लम्बी चौडी सूची पकडा दी,जिसको […]