टेबल पर दौड़ता काम
“आप तो, काम करते ही नहीं” बहुत पहले यह जुमला मेरे कानों में पड़ा था। तब मैं आश्चर्य से भर उठा था। क्योंकि इस वाक्य को सुनकर मैं सोच बैठा था, “अरे! यह कैसे हो गया कि मैं काम नहीं करता..? मुझे तो काम करने से तो फुर्सत ही नहीं मिलती…! फिर मुझे यह क्यों सुनाया जा रहा..?” असल में तब से बहुत वर्ष गुजर चुके हैं और इस दौरान यह जुमला मेरे कानों में कई बार टकराया..!
इस जुमले को सुन-सुनकर अब मैं सोचने लगा हूँ कि “काम करना” किसको कहते हैं? और लोगों को कब लगता है कि कोई काम कर रहा है? अतः अब मैं “काम करने की परिभाषा” पर अधिक मशक्कत करने लगा हूँ..और इसकी साधना के लिए वही स्थान चुनता हूँ जहाँ कोई “काम करना” न हो…
एक बात और…मेरा अपना अनुभव कहता है…हमारे देश में काम के सिद्धिकरण की प्रक्रिया ही काम होता है और इस प्रक्रिया में काम करने वाला अपने सिद्धिकरण का दायित्व निभा-निभाकर बेलगाम घोड़े की भाँति उछल-कूद करते हुए बहुत खुश होता रहता है। इधर काम करने के पूरे सिस्टम में “वशीकरण-मंत्र” का बहुत जोर होता है… इस एक मंत्र के सहारे यह सारा सिस्टम शांतिपूर्ण और सिस्टमेटिक ढंग से काम के प्रवाह में प्रवाहमान होता रहता है।
असल में, शायद यही काम करने की मान्यता भी है..! किसी छोटी सी टेबल पर काम का जन्म होता है, फिर कोई इसे काम का दर्जा देते हुए दूसरी टेबल पर बढ़ाता है…अगला उसे काम मानता है और इसे फिर थोड़े ऊँचे टेबल पर ठेल देता है, वहाँ इसे काम समझ लिया जाता है, यहीं से संस्तुत हुआ यह “काम” और ऊँचे टेबल पर पहुँचता है, कुछ दिनों तक यहाँ पड़े-पड़े यह काम अपने “काम” होने के गर्वोन्मत्त भाव से भरा रहता है…इसके बाद यह और हाईलेबल से अनुमोदित होकर इतरा उठता है…क्योंकि उसे “काम” होने की मान्यता प्राप्त हो जाती है!!
अब जाकर इस काम को धरातल पर उतरना होता है, लेकिन नीचे से ऊपर आते-जाते लाल-फीते में बँधा यह काम, या तो अपनी भागा-दौड़ी में थका हुआ होता है या फिर काम मान लिए जाने की गर्वोन्मत्तता में इसे नीचे उतरना रास ही नहीं आता, या फिर यह नीचे आने की अपनी तौहीनी से बचना चाहता है ! खैर, इस मान्यता प्राप्त काम को लाल-फीते वाली उसी फाइल में रहकर आराम फरमाने का भूत सवार हो जाता है।
और इधर काम करने के सिद्धिकरण पर सारा जोर लगना शुरू हो जाता है,आखिर काम को दिखना भी तो चाहिए…! अब यहीं से काम के दिखने-दिखाने और करने, न करने का खेल शुरू होता है। इस खेल में “वशीकरण-मंत्र” की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कौन काम कर रहा है “आप तो, काम करते ही नहीं” बहुत पहले यह जुमला मेरे कानों में पड़ा था। तब मैं आश्चर्य से भर उठा था। क्योंकि इस वाक्य को सुनकर मैं सोच बैठा था, “अरे! यह कैसे हो गया कि मैं काम नहीं करता..? मुझे तो काम करने से तो फुर्सत ही नहीं मिलती…! फिर मुझे यह क्यों सुनाया जा रहा..?” असल में तब से बहुत वर्ष गुजर चुके हैं और इस दौरान यह जुमला मेरे कानों में कई बार टकराया..!
इस जुमले को सुन-सुनकर अब मैं सोचने लगा हूँ कि “काम करना” किसको कहते हैं? और लोगों को कब लगता है कि कोई काम कर रहा है? अतः अब मैं “काम करने की परिभाषा” पर अधिक मशक्कत करने लगा हूँ..और इसकी साधना के लिए वही स्थान चुनता हूँ जहाँ कोई “काम करना” न हो…
एक बात और…मेरा अपना अनुभव कहता है…हमारे देश में काम के सिद्धिकरण की प्रक्रिया ही काम होता है और इस प्रक्रिया में काम करने वाला अपने सिद्धिकरण का दायित्व निभा-निभाकर बेलगाम घोड़े की भाँति उछल-कूद करते हुए बहुत खुश होता रहता है। इधर काम करने के पूरे सिस्टम में “वशीकरण-मंत्र” का बहुत जोर होता है… इस एक मंत्र के सहारे यह सारा सिस्टम शांतिपूर्ण और सिस्टमेटिक ढंग से काम के प्रवाह में प्रवाहमान होता रहता है।
असल में, शायद यही काम करने की मान्यता भी है..! किसी छोटी सी टेबल पर काम का जन्म होता है, फिर कोई इसे काम का दर्जा देते हुए दूसरी टेबल पर बढ़ाता है…अगला उसे काम मानता है और इसे फिर थोड़े ऊँचे स्थान पर ठेल देता है, वहाँ इसे काम समझ लिया जाता है, यहीं से संस्तुत हुआ यह “काम” और ऊँचे टेबल पर पहुँचता है, कुछ दिनों तक यहाँ पड़े-पड़े यह अपने “काम” होने के गर्वोन्मत्त भाव से भरा रहता है…इसके बाद यह और हाईलेबल से अनुमोदित होकर इतरा उठता है…क्योंकि उसे “काम” होने की मान्यता प्राप्त हो जाती है!!
अब जाकर इस काम को धरातल पर उतरना होता है, लेकिन नीचे से ऊपर आते-जाते लाल-फीते में बँधा यह काम, या तो अपनी भागा-दौड़ी में थका हुआ होता है या फिर काम मान लिए जाने की गर्वोन्मत्तता में इसे नीचे उतरना रास ही नहीं आता, या फिर यह नीचे आने की अपनी तौहीनी से बचना चाहता है ! खैर, इस मान्यता प्राप्त काम को लाल-फीते वाली उसी फाइल में रहकर आराम फरमाने का भूत सवार हो जाता है।
और इधर काम करने के सिद्धिकरण पर सारा जोर लगना शुरू हो जाता है काम को दिखना भी तो चाहिए…! अब यहीं से काम के दिखने-दिखाने और करने, न करने का खेल शुरू होता है। इस खेल में “वशीकरण-मंत्र” की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कौन काम कर रहा है, कौन नहीं..इसे जाँचने और जँचवाने के लिए इसी मंत्र की जरूरत होती है… इस मंत्र में पारंगत होने वाले ही “काम करने वाले” होते हैं, जो इस मंत्र में पारंगत नहीं होते उन्हें “काम न करने वाले की” सिद्धि प्राप्त होती है,फिर उन्हें ही “काम न करने” का जुमला सुनाया जाता है…बाकी काम होते हुए देखने की किसी को फुर्सत नहीं है, क्योंकि सभी इस वशीकरण-मंत्र के वशीभूत काम को टेबल पर दौड़ाने में लगे होते हैं..!!