नारी सशक्तिकरण : स्त्री-पुरुष में समानता आवश्यक
वैदिक सभ्यता काल से ही स्त्री-पुरुष में भेद होता रहा है। पुरुष प्रधान पितृ सत्तात्मक समाज ने स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कम सक्षम व कम सामथ्र्यवान माना हैं। हालांकि धर्म के अनुसार पत्नी रूप में नारी अद्र्वांगिनी है और नारी हर रूप में पूजनीय है, तो भी नारी को समाज दोयम दर्जे का ही मानता रहा है।
शनैः-शनैः नारी की स्थिति बद से बदतर हो गई, और बाल-विवाह, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, कन्या वध, विधवा विवाह अमान्यता आदि रूग्णताओं ने नारी की दशा को दीन-हीन बना दिया। अशिक्षा, पराश्रितता व रूढ़ियों ने नारी की दशा को दयनीय कर दिया। उसे भोग की वस्तु भी माना जाने लगा, तथा उसका भावनात्मक व शारीरिक शोषण भी व्यापकता के साथ होने लगा, जिससे न केवल वह बाह्य रूप में दुर्बल हुई, बल्कि आंतरिक रूप में भी वह दुर्बल हो गई। उसका आत्मविश्वास, आत्मबल व आत्मसम्मान न केवल हिल गया, वरन् वह स्वयं को दीन-हीन मानने को भी विवश हो गई।
आधुनिक युग में नारी चेतनाः- पर आधुनिक काल में नारी-शिक्षा व आत्मनिर्भरता के लिए जो प्रयत्न हुए, उससे नारी सशक्तिकरण की दिशा में समाज एकदम कई कदम आगे बढ़ गया। यद्यपि समाज में यह संदेश व्यापकता के साथ प्रसारित हो चुका है, कि ’’ पुत्री पुत्र समान’’। तो भी, अभी भी पुत्र पुत्री में भेद की, एवं असमानता की मानसिकता हमें दृष्टिगोचार होती है।
यह सच है कि शिक्षा के प्रसार ने नारी सशक्तिकरण के कार्य को काफी आगे बढ़ाया है। नारी शिक्षा पर जोर व सामाजिक चेतना के प्रसार ने यह सिद्व कर दिया है, कि स्त्रियां पुरुषों से किसी भी तरह से कम नहीं हैं। आज बेटियां बेटों से कहीं अधिक बढ़कर अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रही हैं। हाल ही का ओलंपिक इसका सशक्त दृष्टांत हैं, जिसमें साक्षी मलिक, पी.वी. सिंधु व दीपा कर्माकर ने अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर अपने को बेटों से कहीं अधिक श्रेष्ठ न केवल सिद्व किया, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के सम्मान की भी सुरक्षा की।
यद्यपि अभी भी समाज में पुत्र की अपेक्षा पुत्री की चाहत रखने वाले लोगों की संख्या कहीं अधिक है, तो भी यह सत्य हैं कि इस समय राजनीति, प्रशासन, पुलिस सेना, खेल साहित्य, सिनेमा, कला, विज्ञान, शिक्षा, प्रबंध, व्यापार-उद्योग आदि विविध क्षेत्रों में नारियों ने अपने श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया है, और कर रही हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है कि समाज ’’कन्या-भ्रूण हत्या’’ के अभिशाप से मुक्ति पाए। क्योंकि बेटों की अंध लालसा में अनगिनत कन्याओं की गर्भ में ही हत्याएं की जा रही हैं। यह अमानवीयता व नृशंसता का कार्य तो है, ही यह अवैधानिक कार्य होने के साथ ही बहुत बड़ा सामाजिक अपराध भी है। इससे मुक्ति पाये बिना नारी-सशक्तिकरण की ओर दृढ़ता के साथ नहीं बढ़ा जा सकता । वैसे तो नारी-शिक्षा का कार्य सरकारों के द्वारा व्यापक रूप में किया जा रहा है, पर अभी भी बेटियों को बेटों की तुलना में हेय माना जाता है। वैसे बेटियों को शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए उन्हें योजनाओं के माध्यम से अनगिनत सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी दृष्टिगोचर हुए हैं। पर तो भी समाज में असमानता की संकीर्ण मानसिकता दृष्टिगोचर होती है। इस मानसिकता का निर्मूल होना अति आवश्यक है, अन्यथा नारी सशक्तिकरण का कार्य संपन्न हो पाना संभव नहीं हैं।
वास्तव में, आज नारियां राजनीति व समाज से जुड़कर भी अपनी श्रेष्टता व विशिष्टता का प्रदर्शन कर रही हैं। स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधि के रूप में नारियों की भागीदारी व सक्रियता नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम है। आज विधान सभाओं व संसद में भी नारी की महत्वपूर्ण भागीदारी है, जिससे रिस्त्रों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का व्यापक अवसर मिला है, तो भी यह भागीदारी और बढ़ाई जानी आवश्यक है। आज वैसे तो विविध क्षेत्रों मंे नारी सक्रिय है, पर ग्रामीण क्षेत्रों व कस्बाई-परिवारों में ’’घरेलू हिंसा’’ ने नारी की आत्मनिर्भरता व प्रगति को नकाकात्मक रूप में बहुत प्रभावित किया है। दहेज जैसी रूग्णता ने स्त्रियों के सम्मान व जीवन को काफी कमजोर कर दिया है। इन विकारों से मुक्ति पाना अपरिहार्य है, अन्यथा नारी-सशक्तिकरण का कार्य तीव्र न हो सकेगा।
यथार्थ तो यह है कि वास्तव में नारी किसी भी प्रकार से निशक्त/अशक्त या अबला नहीं है, बल्कि सशक्त व सबला है, पर निर्भया कांड व मुजफ्फर नगर केस, जैसी घटनाएं नारी की अस्मिता पर बदनुमा दाग लगाकर उसे निशक्त सिद्व करने की दुष्चेष्टा कर रही हंै। आज नारी का मनोबल काफी बढ़ा हुआ है, और उसे न्यायपालिका, विधायिका व कार्यपालिका सभी से सकारात्मक संरक्षण मिला हुआ है। कानून उसके साथ है, तो भी सुरक्षा के दायित्वों के निर्वहन में प्रशासन-पुलिस के द्वारा की गई लापरवाही नारी की लज्जा को तार-तार कर रही है। यदि हमें वास्तव में नारी-सशिक्तकरण के कार्य को शत्-प्रतिशत् सफल बनाना है, तो हमें हर प्रकार से नारी को सुरक्षित करना होगा।
वैसे यह सत्य है कि किसी भी प्रकार के सुधार हेतु एक चेतना की आवश्यकता होती है। और सामाजिक क्षेत्र में तो यह बात व्यापक रूप में महत्व रखती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि समाज जाग्रत हो, तथा अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाए, और स्त्री-पुरुष समानता के आचार-विचार का अनुपालन करे।
यह वास्तविकता है कि नारी जितनी अधिक सशक्त होगी समाज उतना ही अधिक सशक्त होगा। परिवार,समाज व राष्ट की मजबूत आधारशिला होती है। नारी का शक्तिशाली होना अर्थात् राष्ट्र का शक्तिशाली होना है। नारी में अनंत ऊर्जा, संकल्पशीलता, निष्ठा, दृढ़ता, धैर्य, साहस, त्याग व कत्र्तव्यनिष्ठा का वास होता है। यदि उसे शोषण, उत्पीड़न, उपेक्षा, भेदभाव व असमानता से नहीं बचाया गया, तो नारी की उर्जा का समाज व राष्ट्र कभी भी पूर्णताः के साथ सदुपयोग नहीं कर पाएगा।
समाज में जो भी नारी के अधिकार व हैसियत संबंधी विसंगतियां दृष्टिगोचर हो रही हैं, उनके निराकरण हुए बिना नारी सशक्तिकरण का कार्य भलीभांति पूर्ण हो सकना संभव नहीं है। वैसे नारियों को संवैधानिक व प्रशासनिक दृष्टि से अनेक अधिकार प्राप्त हैं, पर फिर भी क्रियान्वयन में शिथिलता आने से नारी के सशक्तिकरण का कार्य सम्पन्न हो पाने में अनेक व्यवधान आ रहे हैं। आज यह समय की मांग है कि कन्या भू्रण की सुरक्षा से लेकर बालिकाओं, किशोरियों, युवतियों, गृहिणियों आदि सभी प्रकार की नारियों को हर प्रकार से अधिकारवान, बनाया जाए। कहीं भी किसी भी प्रकार से नारी के अधिकारों का हनन न हो, नारी को घर-बाहर, कार्यालय, सिनेमा, बाजार, सार्वजनिक स्थलों,यात्रा के दौरान कहीं भी अप्रिय स्थिति (छेड़छाड़/उत्पीड़न/अभद्रता) का सामना न करना पड़े, ऐसे हालात बनाना तथा सकारात्मक परिवेश निर्मित करना आवश्यक है।
वैसे शासन ने जिला महिला-बाल विकास विभाग व महिला सशक्तिकरण अधिकारी के माध्यम से नारी सशक्तिकरण की दिशा मंे सार्थक कदम उठाया है। नारी शिक्षा का प्रसार भी दिन-प्रतिदिन हो रहा है, हर क्षेत्र व हर विभाग में आज नारी के कदम आगे बढ़ रहे हैं, जो संतोष का विषय है। पर यह भी आवश्यक है कि नारी को उत्पाद (उपभोग की वस्तुु) न समझा जाए, और सिनेमा, टी.वी. माॅडलिंग व विज्ञापनों में उसे नग्न (उन्मुक्त) रूप में कदापि भी प्रस्तुत न किया जाए।
समाज में स्त्री-पुरुष समानता का भाव पल्लवित पोषित होना ही चाहिए, तथा बेटे की श्रेष्ठता व बेटी की उपेक्षा का भाव खत्म होना ही चाहिए। बेटी, पत्नी, माॅ, बहू हर रूप में नारी उत्पीड़न/शोषण मुक्त होनी चाहिए, तथा ऐसा वातावरण होना चाहिए, जो नारी को सम्मान के साथ ही, उसे हर प्रकार से अपनी प्रतिभा/योग्यता दिखाने का अवसर प्रदान कर सकें। आज नारी सशक्तिकरण समय की मांग है, और आवश्यकता भी।
— प्रो.शरद नारायण खरे