जज्बात
जज्बात की तेज आंधी में प्यार के फूल
// कहाँ खिलते हैं //
डोर से टूटी पतंग को आसमान कहाँ मिलते हैं ।
शाखों पर हलचल तो हुआ करती है
// हवा के झोंको से //
बिन मेहमान के सूने घर कहाँ खिलते हैं।
मेघों की जुम्बिश खींच लेती है
// ध्यान तो सबका //
टूटे हुए घर परिदों के घर फिर कहाँ बसते हैं ।
वो ढलता हुआ सूरज दे जाता है
// रात की कालिमा //
यादों के मचलते अहसास रूह को भी छलते हैं ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़