साहिल / किनारा
साहिल को क्या मालूम कि
कितनी कश्तियाँ डूबीं ,
कितने अरमान जले
कितने ही साहिल पर
आपस में मिले
समंदर के किनारे पर ,
एक – दूसरे के हो गये
पर , वहीं वे
अपने प्राणों से हाथ धो गये ।
यूँ तो साहिल जानता है औरों का दर्द
तभी तो इशारे के रूप में उफनता है ,
चेतावनी देता हुआ
कि आने वाला है तूफ़ान
ओ नादान ,
दूर चला जा , बचा अपने प्राण।
पर विपत्ति से अनजान , परवाना
लहरों के खेल का दीवाना ,
उसने हश्र नहीँ जाना
मानव जन्म की अहमियत को
कतई नहीं पहचाना ।
साहिल से , किनारों से
देखते ही देखते
लहरों में विलीन हो गया
वह अभागा लहरों का दीवाना ।
साहिल पर नसीहत लेते हुए बस ,
देखता रह गया असहाय ज़माना ।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’