यात्रा
जीवन एक यात्रा है
है नहीं ये कोई मंजिल
क्यों भूले तुम इसको प्राणी
क्या करने की तुमने ठानी ।
क्या पाने को भटक रहे हो
यात्रा दूषित कर रहे हो ।
जीवन में सुख ढूंढ रहे तुम
अपने आप में सिमट रहे तुम।
यात्रा कैसे सुखमय होगी
सुख-दुख नहीं गर साँझा होंगे।
क्या पाने को ललक रहे हो
किसके पीछे भाग रहे हो।
सब कुछ छिपा है भीतर में
एक बार तुम झाँक लो मन में।
जीवन का आनंद मिलेगा
रोम- रोम खिल उठेगा ।
जीवन पथ में उन्नति होगी
यात्रा सुखमय हो जाएगी।
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम