श्रावणी तीज
लो फिर आ गई सावन की झड़ी
मोहन के इंतजार में राधा है खड़ी।
करके सोलह श्रृंगार राधा
मन मोहन की टेर लगाए,
झूला झूले सखियाँ प्यारी
गावें गीत मल्हार दुलारी ।
सावन की रितु आई
घनघोर घटा नव छाई ,
ठंडी- ठंडी पड़े फुहारें
तन- मन हर्षा जाए।
प्यारी कोयल कूक रही है
क्यारी क्यारी गूँज रही है,
सुनकर मेघो की गर्जना
दिग दिगंत छटा छा गई
आस लिए खड़ी विरहणी
घर की चौखट पर हर्षाये,
उचक उचक फिर देख रही
अभी तक पिया नहीं आए ।
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम