तरही ग़ज़ल
प्यार का अजब सिला मिला हमको।
होकर फिर वो जुदा मिला हमको।
जिसकी आँखों में थी कभी ज़िन्दादिली;
वो जब मिला खफा मिला हमको।
वक्त ने बदल दिया फिर कितना उसे;
अपने ही शहर में गुमशुदा मिला हमको।
टकरा कर लहरें साहिल से लौट गईं;
किसी कशमकश में उल्झा मिला हमको।
हारा हुआ कोई मुसाफिर हो जैसे वो;
अशको को यूं बहाता मिला हमको।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !