तुम्हें टॉप करना है !
ख्वाहिश तो हर ममी पापा की यही होती है कि उनका बेटा या बेटी ही टॉप करे, हर लिहाज से दूसरों के बच्चों से बेहतर निकले।
कभ-कभी बार बार बच्चों पर इस बात का दबाब डालना महंगा भी पड़ सकता है, अपने बच्चों की रिशतेदार के बच्चों से तुलना करना सही नहीं है,क्योंकि हर बच्चे मे अलग अलग सोच और दिमाग होता है किसी काम को पूरा करने का। हम अपनी क्षमता के मुताबिक उस काम को करते हैं,पर सूरज की ममी को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि उसकी यह जिद्द बार-बार सूरज पर दबाब डालने की बात कि टॉप ही करना है बाकि बच्चों से आगे निकल के दिखाना है, सूरज के् दिमाग पर दबाब सा बन गया था। एक डर बैठ गया था कि अगर सच मैं कुछ कर न पाया तो ममी डांटेगी मुझे ताने मारेंगी सभी रिशतेदारों के सामने कि यह तो हैं ही नालायक इससे कुछ नहीं होता। सूरज बहुत कोमल ह्रदय का लड़का था वो समझता था कि सभी उससे उम्मीद रखते हैं उसे उन पर खरा उतरना होगा। सूरज जानता था कि टॉप करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी जो वो नहीं कर पाता था। उसका दिमाग थोड़ा कमज़ोर था, वो चाह कर भी वो तैयारी नहीं कर पा रहा था जो उसकी ममी चाहती थी।
उसकी दिलचस्पी पढ़ाई में कम ड्राइंग में ज्यादा थी, पर वो जानता था कि उसकी पसंद को कोई नहीं समझेगा। आखिरकार इम्तिहान सर पर आ गए दसवीं की परिक्षा थी तो दबाब भी बहुत ज्यादा था। ममी के ताने और कड़वी बाते,वो तंग आ गया था सुन सुन कर कि किसी के बच्चे ने नियानवे प्रतिशत अंक लाए किसी ने नब्बे प्रतिशत,पर वो इतनी मेहनत नहीं कर पा रहा था। इम्तिहान का उस पर हौआ सा बन गया था और वो डर गया था इसी डर से तनाव से वो डिप्रेशन में चला गया और पहले ही इम्तिहान में चक्कर खा कर गिर गया। जैसे तैसे उसे होश आया तो इम्तिहान का काफी समय निकल गया था उसके पास कम समय बचा था काम ज्यादा था, वो जितना कर सकता था किया और घर आ गया आते ही ममी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि इम्तिहान कैसा रहा वो जोर जोर से रोने लगा और सिर पकड़ कर बैठ गया और बोला ममी मुझे बहुत डर लगता है मैं तो पास भी नहीं हो पाऊंगा। डर के मारे जो आता था वो भी भूल गया और चक्कर आ गया मैं बिल्कुल अच्छा नहीं कर पाया स्कूल मे तो अस्सी प्रतिशत तक आते हैं पर लगता है मैं पास भी नहीं हो पाऊंगा, मुझे सिर दर्द हो रहा है जोर जोर से मैं बाकि के इम्तिहान नहीं दे सकता। ममी जान चुकी थी कि यह उसकी ही बातों की वजह से हुआ है सूरज बहुत सहम गया था, ममी ने सिर पर हाथ फेरा और डॉक्टर के पास ले गई और डॉक्टर से मिलकर सारी बात सुनाई कि मैं कुछ गल्त तो नहीं चाहती अपने बेटे का भविष्य ही सुधारना चाहती हूँ। पर लगता है यह डर के मारे कुछ भी नहीं कर पा रहा है अपनी योगयता से भी पीछे हो गया है आत्मविशवास ही नहीं रहा इसमे पहले इम्तिहान में ही हार कर बैठ गया है बस रोए जा रहा है। डॉक्टर ने अपने तरीके से सूरज को समझाया और उसके दिमाग से बोझ कम करने को कहा और कोई टैंशन न लेने को कहा, वहीं सूरज को बाहर भेज कर उस की ममी को भी समझाया कि ठीक है हमें बच्चो को समय समय पर राह दिखानी पड़ती है पर बार बार बच्चे को कम आंकना या किसी के साथ तुलना मे लाना उस बच्चे की अपनी योगयता और क्षमता को भी भुला देता है और बच्चा जब नहीं कर पाता तो मानसिक तनाव उसके अंदर घर कर जाता है वो खुद को दोषी मानने लगता है और हार मान लेता है और अकेला महसूस करता है। ऐसे मे कोई गल्त कदम भी उठा सकता है, इसलिए बच्चों को कुछ स्पेस और आजादी देनी पड़ती है जिससे वो अपनी क्षमता को पहचान कर अपना बेहतर दे सकें। ममी समझ गई थी,सूरज मे भी थोड़ा आत्मविशवास जगा था उसने बिना किसी डर और अंको के खौफ के अपना बेहतर किया और अच्छे अंक भी लाए। हाँ ,उतने तो नहीं जितने ममी चाहती थी पर उतने जो वो अपनी कड़ी मेहनत से बिना हौआ समझ इम्तिहान को ला सकता था। ममी भी अब समझ चुकी थीं सूरज को फिर स्वस्थ और खुश आत्मविशवास से भरा देखकर ममी बहुत खुश थी, और अब फिर कभी सूरज से नहीं कहा कि तुम्हें टॉप करना है।