कविता – लड़कियाँ
दूसरी दुनिया का चक्कर काट आयीं लड़कियाँ,
समुन्दर की गहराइयों से पार पायीं लड़कियाँ।
दुश्मनों की जरूरत है इन्हें अब भी क्या,
गर्भ में अपने ही माँ के मार खायीं लड़कियाँ।।
जो बच गयी जन्म लेकर इस धरा पर आ गयीं,
जिंदगी भर चोट खायीं लड़खड़ाई लडकियां ।
उम्र भर की कुल कमाई झोंक दी माँ बाप ने,
दहेज की आग में जाती जलाई लड़कियाँ।।
धर्म है हमको सिखाता जीव हत्या पाप है,
इन दरिंदों के लिए इंसान वध भी माफ़ है।
सृष्टि थी मनु ने रची श्रद्धा संग आकर यहां,
अपनी ही दुनिया से जाती भगाई लड़कियाँ।।
बीवियां सबको जरूरी बहन बेटी से घृणा,
वक़्त है मनुजों अभी करलो इसपे मंत्रणा।
न करेगी माफ़ प्रकृति इस जघन्य अपराध को,
सृष्टि सृजन के लिए कैसे मिलेंगी लड़कियाँ।।