गज़ल
भरे नीर से नैन हारे कहाँ हैं
मिरी आँखों के वो सहारे कहाँ हैं
बढ़े साथ पाये पनाहे कहाँ हैं
जले नभ सितारे नजारे कहाँ हैं
चलो भूल दुनिया निहारे नया सा
कहीं आस बढियां पुकारे कहाँ हैं
अगर गुम हुए हैं रहें जो हमारे,
उदासी सुनाती इशारे कहाँ हैं
मिरे हिस्से के सारे नज़ारे कहाँ हैं
मुकद्दर के मेरे सितारे कहाँ हैं
— रेखा मोहन