ग़ज़ल
हुआ क्या है तुझे चेहरा बुझा क्यों है
हँसी उल्लास सबकुछ अब लुटा क्यों है ?
नयन कुछ आज कहता और दिल बात और
बता सच आज तू इतना डरा क्यों है |
कभी मिलता नहीं है आचरण, आदत
यही क्या सोचती वो’ बेवफा क्यों है ?
ज़रा दिल से बता तू सोच कर मुझको
हमारे बीच में ये फासला क्यों है ?
नहीं हर कोई’ करता बात मीठी सब
बचाया तंज से फिर दिल जला क्यों है ?
मुहब्बत ही तो’ जीवन सार है जग में
जवाँ दिल को यही करना मना क्यों है ?
मुहब्बत से अगर जीना ही’ जीवन है
मुहब्बत की सज़ा जग में क़ज़ा क्यों है |
मिलाया है नज़र से जब नज़र ‘काली’
दिलों का राज परदे में छुपा क्यों है ?
कालीपद ‘प्रसाद’