ग़ज़ल
जहाज़ चाहिए तूफानी बेकराँ के लिए
विशिष्ट गुण सभी, जी एस(जी एस टी) इम्तिहाँ के लिए
है कायदा यहाँ धरती के आदमी वास्ते
नहीं नियम कोई भी जंद आसमाँ के लिए
अवाम डरते थे तब लाल आँख को देखकर
समाप्त डर हुआ मिज़्गाँ-ए-खूँफियाँ के लिए
मनुष्य जाति यहाँ, आते चार दिन वास्ते
न राम कृष्ण बने उम्रे जाविदाँ के लिए
यहीं पले यहीं खाते स्तवन करे पाक की
सज़ा क्या इन छली गद्दार राजदाँ के लिए
दिलेर हैं वो वफादार है आशियाँ के लिए
जवाबदेह बना किसका’ पस्तियाँ के लिए
रकीब के सभा में जा रहे हो चौकस रहो
चलेंगे चाल कई गर्म जोशियाँ के लिए
तमाम कायदा कानून लागू है दीन पर
बने नियम अभी कुछ फ़क्त पासबाँ के लिए
हरेक वस्तु हुआ सस्ता कास्तकारी में अब
हसीन वाद है जी एस, देहकाँ के लिए
हवा, फिजा भी प्रदूषित, बचा नहीं भू कहीं
न ही जमीन बची “काली” बोस्ताँ के लिए
— कालीपद ‘प्रसाद’