गज़ल
जो पूरा ना हो सकता हो वो ख्वाब बदल डालो,
अंजाम बदलना हो तो तुम आगाज़ बदल डालो,
इल्ज़ाम देते जाओगे कब तक तुम तकदीरों को,
उठो मेहनत करके अपने हालात बदल डालो,
हमारे लिए हैं रस्में सारी हम रस्मों के लिए नहीं,
सड़े हुए, दकियानूसी सब रिवाज़ बदल डालो,
ज़रूरी है इस शहर में थोड़ा फासला रखना भी,
यूँ खुल के सबसे मिलने का अंदाज़ बदल डालो,
फल देगा कल वो पौधा जो तुम अभी लगाओगे,
कल को बदलना हो तो अपना आज बदल डालो,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।