“यही तो मेरा कातिल है”
यह जो तुम्हारे होठों पर काला तिल है,
यही तो मेरा कातिल है,
तिरछी नजर से देख कर जो मुस्कुराते हो,
मेरे दिल को तुम कितना जलाते हो,
यह जो तुम मुड़ मुड़कर देखते जाते हो,
मेरी धड़कनों को नाहक बढ़ाते हो,
तुम बार-बार मिलने का बहाना करते हो,
जानता हूं मुझ पर मरते हो,
पर अजब विडम्बना है हमारी तुम्हारी,
मैं भी कुछ कहने से बचता हूं,
तुम भी कुछ कहने से बचते हो,
-राजेश सिंह