दोहा-रोला-कुंडली
दोहा
*अपने पुरखों ने कही,बड़ी तथ्य की बात ।*
*व्यर्थ खर्च करना नही,व्यर्थ स्वयं से घात ।।*
रोला
व्यर्थ स्वयं से घात,कष्टमय जीवन होता ।
पाता वह ही धान,खेत में जो है बोता ।।
सुनो ! सुमन उत्कर्ष,अधूरे मन के सपने ।
छोड़े जग सब साथ,त्याग देते सब अपने ।।
कुण्डली
अपने पुरखों ने कही,बड़ी तथ्य की बात ।
व्यर्थ खर्च करना नही,व्यर्थ स्वयं से घात ।।
व्यर्थ स्वयं से घात,कष्टमय जीवन होता ।
पाता वह ही धान,खेत में जो है बोता ।।
सुनो ! सुमन उत्कर्ष,अधूरे मन के सपने ।
छोड़े जग सब साथ,त्याग देते सब अपने ।।
— नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना