नेहरू की गलतियों का महादंश झेल रहा जम्मू-कश्मीर
वर्तमान समय में जम्मू-कश्मीर को लेकर बहुत कुछ घट रहा है तथा वहां की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिये कई कोणों से काम किया जा रहा है। भारतीय सेना पूरी जाबांजी के साथ पत्थरबाजों के हमलोें को सहते हुए घाटी से आतंकियों का सफाया करने के लिये आपरेशन आल आॅउट चला रही है। वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर की ही नहीं अपितु पूरे देश की राजनीति को बदलने के लिए बहुत सारे कानूनों की वैधता पर अब सुप्रीम कोर्ट में बहस होने जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में धारा-370 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका तो स्वीकार कर ली है वहीं दूसरी ओर धारा-370 के समकक्ष एक और अनुच्छेद 35-ए पर भी बहस करने व इसे 6 हफ्ते में निपटाने का समय कोर्ट ने तीन जजों की बेंच को देकर राज्य की राजनीति में एक खलबली सी पैदा कर दी है। जब से अदालत ने 35-ए पर बहस करने व फैसला सुनाने का निर्णय किया है तब से राज्य के अलगाववादी नेताओं व इन कानूनों की आढ़ में अपनी राजनीति चमकाने वाले अब्दुल्ला परिवार व महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं के पैरों तले की जमीन खिसक गयी है।
कश्मीर में अलगाववादियों ने संविधान के अनुच्छेद 35-ए को निरस्त करने के कथित प्रयास और अन्य मुद्दों के विरोध में 12 अगस्त को बंद का आह्वान करके अपना चरित्र ही उजागर कर दिया है। वहीं नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला ने धमकी भरे लहजे में कहा है कि यदि संविधान के अनुच्छेद 35-ए को निरस्त किया गया तो जनविद्रोह की स्थिति पैदा हो जायेगी। वहीं इस बीच सबसे बड़ी खबर यह आयी है कि जब से एनआईए ने पाकिस्तान के साथ होने वाले व्यापार को रोकने की मांग की तथा 35-ए पर फैसले की घड़ी आयी तो अलगावादियों के प्रति नरम रवैया अपनाने वाली तथा बीजेपी के साथ सरकार बनाने के कारण घाटी में अपनी लोकप्रियता खोने वाली मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी चैंकाने वाले बयान देने लग गयी हैं तथा अपना निर्धारित प्रोटोकाल तोड़कर फारुख अब्दुल्ला से मिलने चली जाती हैं।
इससे यह साफ पता चल रहा है कि ये सभी दल असंवैधानिक कानूनों के बल पर राज्य में अपनी राजनैतिक जमीन को भी असंवैधानिक तरीके से चला रहे थे। यही कारण है कि अब उनके चेहरे से नकाब उतर चुका है। अलगावादी एनआईए के कारण चारों तरफ से घिर चुके हैं। अब्दुल्ला परिवार का तो इतिहास ही भारत विरोधी रहा है। यह परिवार पत्थरबाजों का खुला समर्थक है। अब्दुल्ला ने कभी सेना के शहीद जवानों की सुध नहीं ली। नेहरू जी की नीतियों का महादंश आज कश्मीर झेल रहा है।
आइये जानते हैं, कि क्या है अनुच्छेद 35-ए? सुप्रीम कोर्ट में 2014 में अनुच्छेद 35-ए को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की गयी थी। उसके बाद केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार से जवाब मांगा गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस पर व्यापक बहस की जरूरत है। अब यह माना जा रहा है कि सितंबर में इस विवादित अनुच्छेद पर कोर्ट फैसला सुना सकता है। इस अनुच्छेद को हटाने के लिये एक दलील यह भी दी जा रही है कि इसे संसद के माध्यम से लागू नहीं करवाया गया था। ज्ञातव्य है कि 14 मई, 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था जिसमें भारत के सविंधान में एक नया अनुच्छेद 35-ए जोड़ दिया गया था। अनुच्छेद 35-ए के अनुसार जम्मू-कश्मीर का नागरिक तभी राज्य का नागरिक माना जायेगा जब वह वहां पैदा हुआ हो। किसी अन्य राज्य का नागरिक जम्मू-कश्मीर में न तो अपनी संपत्ति ना तो खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थानीय नागरिक बनकर रह सकता है। 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बना तो उसमें स्थायी नागरिकता को पारिभाषित किया गया है।
अब प्रश्न यह उठता है कि वहां का वहां का स्थायी नागरिक है कौन? वहां के सविंधान के अनुसार 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षो से राज्य में रह रहा हो। उसने वहाँ सपत्ति हासिल की हो।
उदाहरण के तौर पर उप्र का निवासी महाराष्ट्र आदि राज्यों में रह सकता है तथा नौकरी व व्यापार कर सकता है तथा जमीन खरीदकर संपत्ति आदि खरीद लेता है तो वह वहां का स्थानीय नागरिक बन जाता है। लेकिन यूपी का आम नागरिक कश्मीर में जाकर न तो संपत्ति खरीद सकता है और न ही वहां की लड़की से शादी कर सकता है। एक प्रकार से वहां का कानून ही अलग है तथा इस कानून की आढ़ में ही वहां अनैतिक व देशद्रोही गतिविधियां बड़े आराम से चल रही हैं। अलगावावादी नेता देशभर में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं लेकिन उनके राज्य में देश का कोई अन्य नागरिक जमीन नहीं खरीद सकता। यह एक बहुत बड़ी विडम्बना है। यह नेहरू जी की नीतियों का ही परिणाम है।
अनुच्छेद 35-ए के कारण जम्मू कश्मीर में पिछले कई दशकों से रहने वाले बहुत से लोगों को कोई अधिकार नहीं मिला है। जम्मू में बसे हिंदू परिवार आज तक शरणार्थी हैं। एक आंकड़े के अनुसार 1947 में वहां पर पांच हजार 764 परिवार आकर बसे थे। इन परिवारों में 85 प्रतिशत दलित थे। इन परिवारों को आज तक कोई नागरिक अधिकार नहीं मिला है। ये लोग सरकारी नौकरी नहीं कर सकते। न ही इन लोगों के बच्चों का किसी सरकारी संस्थान में प्रवेश हो सकता है। अनुच्छेद 35-ए के अनुसार यदि कोई लड़की बाहरी लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार समाप्त हो जाते हैं।
वर्तमान समय में अब सुप्रीम कोर्ट धारा-370 व राज्य को विशेष दर्जे पर बहस के लिए तैयार हो गया है तथा केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है जिसके कारण अब यह सभी दल पूरी तरह से बौखला गये हैं। इन दलों व अलगावादियों को लगने लगा है कि अब उनके पैरों तले की जमीन खिसकने जा रही है। यही कारण है कि वह एक बार फिर अपने पुराने रास्ते अलगावाद को और तीखा करने जा रहे हैं। ऐसा करके वह अपने पापों व बेनामी संपत्तियों को बचाने के लिए काम करने जा रहे है। मुख्यमंत्री महबूबा से लेकर अब्दुल्ला परिवार तथा अलगाववादी नेताओं ने जमकर बेनामी संपत्ति भी जमा की है, पत्थरबाजों व आतंकवादियों के संरक्षक भी हैं। अब समय आ गया है कि देश की सर्वोच्च अदालत ही वहां की तमाम गंदगियों को ठीक करे। निश्चय ही देश की निगाहें कोर्ट व सेना की तरफ मुड़ गयी हैं। आशा की जानी चाहिए कि कश्मीर घाटी में सेना का आपरेशन सफल होगा तथा मोदी राज में ही समस्या का कुछ न कुछ हल निकलेगा। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, था और रहेगा।
— मृत्युंजय दीक्षित