गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो नशीली शराब की सूरत
यूँ लगे है जनाब की सूरत ।

मेरी हस्ती सवाल के जैसी
और वो हैं जवाब की सूरत ।

एक हिस्से में लाख कांटे हैं,
एक हिस्सा गुलाब की सूरत।

तुझको पढ़ना है उम्र भर मुझको,
तेरी सूरत किताब की सूरत!

यूँ तो दीदार भी कहाँ मुमकिन,
जब वो निकले हिजाब की सूरत!

क्या घटाऐं, क्या तो जोडें ‘जय’,
है गणित के हिसाब की सूरत!

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से