गीतिका
मातृभूमि पर शीश झुकाऊं ये गगन, ओढ लूं आज,
एक तिरंगा बदन लपेटूं अपना वतन, ओढ लूं आज!
अम्नो-अमान हो फिर से कायम ग़र वादियां महक उठे,
काश्मीर की केशर क्यारी अपने बदन, ओढ लूं आज!
तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, ग़ालिब, फिराक़, रसखान,
एक की ग़ज़ल मैं गाऊं, एक के भजन, ओढ लूं आज!
आजादी के मतवालों की अब राह सभी को चलना है,
जन-जन के मन में अलख जगे ये लगन, ओढ लूं आज!
जीवन की अंतिम सांस अपनी कर दूं देश पर अर्पण,
मिट जाने का ज़ज्बा लेकर इक कफन ओढ लूं आज!
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र