राख
क्या रखा इस जीवन में
क्यों इतराना इस दुनिया में
एक दिन तो खाक होना हैं
फिर क्यो लड़ते है आपस में
है क्यों अभिमान खुद पर
नही रखते दया भाव किसी पर
सब एक जगह से आये हैं
फिर यहॉ क्यों कतराते है मिलने पर
कुछ करना है यदि जीवन में
तो जगह बनाओ लोगो के दिलों में
एक दिन इस शरीर को ऱाख होना हैं
तो क्यों नही नाम कमाये इस जग में
लोगो में देखने को मिलता है जोश
यहॉ तो सब कमाने में है बेहोश
आपा धापी की लगी यहॉ होड़ हैं
समय बितने पर होते बस अफसोस
खाते कमाते बित गये जीवन
पता न चला कब आया सावन
बुढापा में बैठकर सोचते हैं
न जाने क्या-क्या बिना किसी कारण।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’