गज़ल
तू भी मेरी तरह ही गलती का पुतला निकला,
मैंने समझा था तुझे क्या और तू क्या निकला
तमाम शहर के अबरू पे तब शिकन आई,
मैं जब कभी भी ढूँढने तेरा पता निकला
आज छोड़ा जो आसमां में तो ये राज़ खुला,
बाज दिखता था जो हमको वो फाख्ता निकला
नहीं कसूर किसी का मेरी तबाही में,
मेरा नसीब ही मुझसे खफा-खफा निकला
मैं क्यों ना जीता-जागता खुदा कहूँ माँ को,
इसी के पैरों से जन्नत का रास्ता निकला
— भरत मल्होत्रा