गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कर न पाया कोई जो वो काम उसने कर दिया
राहे उल्फ़त में मुझे बदनाम उसने कर दिया

फेर कर मुंह यूं गया जैसे कोई रिश्ता न हो
एक नए आगाज़ का अंजाम उसने कर दिया

जिसकी चाहत में नया सपना तलाशा था कभी
ज़िन्दगी में हर तरह नाकाम उसने कर दिया

उसके आने की तलब में देर तक बैठी रही
सुब्ह की पथराई आंखें शाम उसने कर दिया

अब तो उसके नाम से मंसूब हैं चर्चे बहुत
बेवफ़ाई की गली में नाम उसने कर दिया

ज़िन्दगी को बेच कर भी मोल ले सकती नहीं
कद से भी ऊंचा बढ़ा कर दाम उसने कर दिया

लोग “शुभदा”जानते थे वो हमारे साथ हैं
बेवजह मुझको मगर गुमनाम उसने कर दिया।

— शुभदा बाजपेयी
15/8/2017