ग़ज़ल
नादान इस तरह से सारा जहान देखें
जैसे नसीब अपना जलता मकान देखें
तकलीफ आपको है हम भी समझ रहे हैं
पंछी को चाहिए वह अपनी उड़ान देखें
थे कहां से चले हम और खड़े हैं कहां पर
है यह बहुत जरूरी मिटते निशान देखें
मां-बाप कैसे होते औलाद कैसे समझे
है हो गया जरूरी फिर बागबान देखें
किस्से हो या कहानी कविता कोई पुरानी
सब में छिपा हुआ है अपना गुमान देखें
— मनोज श्रीवास्तव