गीत
साथी तुम तो चले गए वनवासी जीवन जीती हूँ,
दुनियां के ताने सुन सुन कर घूँट घूँट विष पीती हूँ।
जब तक तुम थे संग राह में
मुश्किल नहीं नजर आई,
साथ छोड़ कर दूर गये तुम
घनी मुसीबत घिर आई
एक तुम्हारी याद भरोसे निशदिन स्वप्न संजोती हूँ।
सीता और राम जैसी ही जोड़ी एक हमारी थी,
हर स्थिति में संग रहे हम कभी न हिम्मत हारी थी,
छोड़ गए तुम मुझे अकेला
अब मैं नयन भिगोती हूँ।
प्रणय सूत्र में बँधें किन्तु
कैसा बन्धन जो टूट गया,
चूक हुई ऐसी क्या हमसे
भाग्य हमारा रूठ गया,
अब लगता है पनघट रीता घट रीता मैं रीती हूँ।
— शुभदा बाजपेयी
१५/८/२०१७