कविता

अंकुर

अचेतना से निकलकर
भविष्य की ओर झाँकती हुई
नवस्फुटित कोंपलें
जीवन की सार्थकता को
परिभाषित कर रही है

नर होकर भी निराश मन
क्यों तेरी जिंदगी
मुसीबतों से डर रही है

थककर हार ना मान
अंदर की जीवन शक्ति को पहचान
बस चलते चलते चलते चल
परिस्थितियों के दलदल से अब निकल

घूम कर देख चारों ओर तेरे
हरियाली है ,बहार है
ढूंढ रही है जिंदगी तुझको
उसे तेरा ही इंतजार है

जितने गम है दिए जमाने ने
सबको पी ले
एक दम भर
इन कोंपलों को देखकर
इंसान तू बस जी ले
इंसान तू जी ले

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733