महक
सरसराती ठंडी हवा
खेतों की मचान पर बैठकर
रात में तारे गिनना
सुबह चिड़ियों की
चहचहाहट से उठना
कुछ यूं कमाल करती थी
गांव की आबोहवा
बैलों के घुंघरू गीत गाते
बड़े-बूढ़े बैठ छोटों को समझाते
बैठकर हम दादी के पास पंखा हिलाते
काश वो दिन दोबारा आ जाते
काश वो दिन दोबारा आ जाते
दूध, दही, घी ,शीत का खानपान हो
महल नहीं छोटा सा मकान हो
लोगों के दिलों में जान हो
मुंडेर पर कौवा बोले
घर पर आते मेहमान हों
फिर घर में बैठकर इतराते
काश वो दिन दोबारा आ जाते