हाँ,मैं रूढ़िवादी हूँ
हाँ,ठीक है तुम कहते हो तो कहो
कि आधुनिक होने के लिए
सड़ी-गली परम्पराओं को छोड़ना जरूरी है
लेकिन विस्मित करता है
इस तरह का सोच तुम्हारा
क्योंकि तुम भी तो
पले-बढ़े हो इसी परिवेश में।
क्या बताओगे तुम
रीति-रिवाजों को मानना
तीज-त्यौहारों को मनाना
मूल स्वरूप में बिना तर्क-वितर्क
पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार रूप में
संजोये रखना कैसे है रूढ़िवादिता !
और पिछड़ेपन की निशानियाँ।
क्या आधुनिक होने के लिए
छोड़ दिये जाने चाहिए
सभी रीति-रिवाज
और तीज-त्यौहार।
आधुनिक होने के लिए
क्या भूल जाएं श्लील-अश्लील का अंतर
अपने जमाने का पहनावा
और रहन-सहन की मूल आदतें
या कि अपना घरेलू खान-पान।
तुम ही बताओ कि आधुनिक
कहलाने कि लिए क्या
दिमाग का परिष्कृत होना ही काफी नहीं
तर्क की कसौटी पर रखकर
नये को स्वीकारना मुझे आता है।
नहीं स्वीकार है मुझे
बिना आधार अपने अतीत
और उसके गौरव को छोड़ना
इस बिना पर अगर तुम कहना चाहो
कह सकते हो कि मैं रूढ़िवादी हूँ।।
डॉ प्रदीप उपाध्याय,१६,अम्बिका भवन,बाबुजी की कोठी,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड़,देवास,म.प्र.
9425030009(m)
क्या बात है। बहुत खूब!!!
धन्यवाद