कविता

हाँ,मैं रूढ़िवादी हूँ

हाँ,ठीक है तुम कहते हो तो कहो
कि आधुनिक होने के लिए
सड़ी-गली परम्पराओं को छोड़ना जरूरी है
लेकिन विस्मित करता है
इस तरह का सोच तुम्हारा
क्योंकि तुम भी तो
पले-बढ़े हो इसी परिवेश में।

क्या बताओगे तुम
रीति-रिवाजों को मानना
तीज-त्यौहारों को मनाना
मूल स्वरूप में बिना तर्क-वितर्क
पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार रूप में
संजोये रखना कैसे है रूढ़िवादिता !
और पिछड़ेपन की निशानियाँ।

क्या आधुनिक होने के लिए
छोड़ दिये जाने चाहिए
सभी रीति-रिवाज
और तीज-त्यौहार।

आधुनिक होने के लिए
क्या भूल जाएं श्लील-अश्लील का अंतर
अपने जमाने का पहनावा
और रहन-सहन की मूल आदतें
या कि अपना घरेलू खान-पान।

तुम ही बताओ कि आधुनिक
कहलाने कि लिए क्या
दिमाग का परिष्कृत होना ही काफी नहीं
तर्क की कसौटी पर रखकर
नये को स्वीकारना मुझे आता है।

नहीं स्वीकार है मुझे
बिना आधार अपने अतीत
और उसके गौरव को छोड़ना
इस बिना पर अगर तुम कहना चाहो
कह सकते हो कि मैं रूढ़िवादी हूँ।।
डॉ प्रदीप उपाध्याय,१६,अम्बिका भवन,बाबुजी की कोठी,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड़,देवास,म.प्र.
9425030009(m)

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009

2 thoughts on “हाँ,मैं रूढ़िवादी हूँ

Comments are closed.